आज की तेज़-तर्रार, पैसों और स्टेटस से भरी दुनिया में सच्चा प्यार ढूँढना किसी चुनौती से कम नहीं है। 2025 में रिलीज़ हुई Materialists इसी आधुनिक समस्या को बड़े ही खूबसूरत और सोच-विचार वाले अंदाज़ में पेश करती है।
इस फिल्म की कहानी सिर्फ एक रोमांटिक कॉमेडी नहीं है, बल्कि एक एंटी-कैपिटलिस्ट संदेश भी देती है — कि प्यार को पैसे, प्रोफेशन और चेकलिस्ट से नहीं मापा जा सकता, बल्कि यह दिल की गहराइयों से पैदा होता है।
कहानी का सार
मुख्य किरदार लूसी (डकोटा जॉनसन) न्यूयॉर्क की एक सफल मैचमेकर है, जो अमीर और प्रभावशाली क्लाइंट्स को उनकी ‘परफेक्ट जोड़ी’ दिलाने का काम करती है।
वह रिश्तों को एक बिज़नेस डील की तरह देखती है — लुक्स, पैसे, और सोशल स्टेटस को सबसे पहले रखकर।
लेकिन जब उसके अपने जीवन में प्यार आता है, तो उसे महसूस होता है कि प्यार में गणित के फ़ॉर्मूले और मार्केट वैल्यू काम नहीं आते।
फिल्म हमें क्या सिखाती है
1. प्यार बनाम व्यवसाय
रिश्तों को सिर्फ फायदे और नुक़सान के तराज़ू पर तोलने से उनकी असली खूबसूरती खो जाती है। प्यार एक दिल से किया गया निर्णय है, न कि कोई कॉर्पोरेट कॉन्ट्रैक्ट।
2. आत्म-जागरूकता की अहमियत
लूसी को यह समझ आता है कि वह दूसरों के लिए तो प्यार ढूँढ रही थी, लेकिन खुद के दिल की आवाज़ नहीं सुन रही थी।
3. पूँजीवाद का असर
फिल्म दिखाती है कि कैसे पैसा और स्टेटस हमारे रिश्तों को भी प्रभावित करते हैं — और कभी-कभी उन्हें खोखला बना देते हैं।
4. गलत चुनाव भी सही हो सकते हैं
हर रिश्ता परफेक्ट नहीं होता, लेकिन अगर उसमें ईमानदारी और अपनापन है, तो वह खास बन जाता है।
डायरेक्शन और परफॉरमेंस
निर्देशक सेलिन सॉन्ग ने फिल्म को हल्के-फुल्के रोमकॉम अंदाज़ में पेश किया, लेकिन हर सीन में एक गहरी सामाजिक टिप्पणी भी छुपी है।
डकोटा जॉनसन, क्रिस इवांस और पेड्रो पास्कल के बीच की केमिस्ट्री फिल्म को और भी दिलचस्प बना देती है।
निष्कर्ष
Materialists एक ऐसी फिल्म है जो हँसी, इमोशन्स और सोच – तीनों का सही बैलेंस बनाती है।
अगर आप ऐसी मूवी देखना चाहते हैं जो रोमांस के साथ आपको सोचने पर भी मजबूर करे, तो यह फिल्म जरूर देखें।
पांच साल में 32% बढ़ी शेरों की संख्या – गुजरात में वन्यजीव संरक्षण की बड़ी सफलता गुजरात में एशियाई शेरों की संख्या में पिछले पांच वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। हाल ही में जारी 16वीं शेर गणना रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में शेरों की संख्या 32% बढ़कर 891 हो गई है। यह उपलब्धि राज्य में वन्यजीव संरक्षण, बेहतर वन प्रबंधन और अवैध शिकार पर सख्त निगरानी का नतीजा है। विशेषज्ञों का मानना है कि शेरों के लिए सुरक्षित और संरक्षित आवास, पर्याप्त शिकार की उपलब्धता और सामुदायिक भागीदारी ने इस वृद्धि में अहम भूमिका निभाई है। गिर अभयारण्य और उसके आसपास के क्षेत्रों में शेरों के लिए लगातार निगरानी और सुरक्षा व्यवस्था मजबूत की गई है। स्थानीय लोगों की जागरूकता और सरकार के प्रयासों ने भी इस सफलता को संभव बनाया। वन विभाग का कहना है कि आने वाले समय में शेरों की संख्या को और बढ़ाने और उनके आवास क्षेत्र का विस्तार करने के लिए नई योजनाएं लागू की जाएंगी। यह उपलब्धि न केवल गुजरात, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व की बात है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें